अगस्त 2019 में जम्मू–कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद वहां के हालात का जायजा लेने 24 देशों के राजनयिकों के एक प्रतिनिधिमंड़ल का दो दिवसीय दौरा समाप्त हो गया। इस प्रतिनिधिमंड़ल में यूरोप‚ अफ्रीका‚ एशिया और दक्षिण अमेरिका के देशों के राजनयिक शामिल थे। केंद्र सरकार की पहल पर जम्मू–कश्मीर पहुंचे विदेशी राजनयिकों ने राज्य के विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक समूहों से मुलाकात की। कश्मीर घाटी की यात्रा के दौरान इन सदस्यों ने जिला विकास परिषद के सदस्यों से भी मुलाकात की। विदेशी राजनयिकों के इस प्रतिनिधिमंड़ल की जम्मू–कश्मीर की यात्रा का मुख्य मकसद यह जानना और समझना था कि राज्य का विशेष दरजा समाप्त किए जाने के करीब १८ महीने बाद क्या वहां की स्थिति सामान्य हो गई है‚ शांति बहाल हो गई हैॽ स्थानीय लोगों ने प्रतिनिधिमंड़ल के सदस्यों को बताया कि यहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रहीं हैं और आम कश्मीरी सरकार के फैसले से खुश हैं‚ लेकिन वास्तविकता यह है कि जम्मू–कश्मीर में स्थायी तौर पर शांति बहाल करने के लिए केंद्र सरकार को कुछ आवश्यक कदम उठाने चाहिए। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि राज्य से अलगाववाद और आतंकवाद खत्म हो। अलगाववाद खत्म करने के लिए सरकार को अपने एजेंडे़ में नागरिक स्वतंत्रता को सबसे ऊपर रखना होगा। इसी के साथ सरकार सुरक्षा का वातावरण बनाए और आतंकवाद के विरुद्ध जारी लड़़ाई में ढिलाई न आने दे। सरकार के इन कदमों से अच्छे परिणाम सामने आएंगे। हालांकि केंद्र सरकार इस दिशा में लगातार आगे बढ़ रही है। हाल ही में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से कराए गए स्थानीय निकायों के चुनाव इसके उदाहरण हैं। वास्तव में भारतीय लोकतंत्र‚ भारतीय बहुलतावाद और भारत की वैश्विक छवि बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि केंद्र सरकार राज्य में शांति बहाल करने के लिए और लोकतंत्र की जड़ें़ मजबूत करने पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करे। कश्मीर की समस्याओं को दूर करने के लिए एक उपाय यह भी है कि इस प्रदेश को जितना जल्द हो सके राज्य का दरजा बहाल कर दिया जाए और वहां निष्पक्ष तरीके से विधानसभा के चुनाव कराए जाएं। इस बारे में गृहमंत्री अमित शाह कह भी चुके हैं कि उचित समय पर जम्मू–कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
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