किसान आंदोलन को भड़काने के लिए इस्तेमाल में लाए गए ट्विटर अकाउंट्स को बंद नहीं करने और इसकी मनमर्जी व्याख्या करने पर मोदी सरकार और ट्विटर के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है. बीते दिनों ट्विटर के अधिकारियों संग भारतीय अधिकारियों की बैठक में दो टूक कह दिया गया है कि देश में यहां के कानून ही चलेंगे. बोलने की आजादी है, लेकिन यह आजादी कुछ बंदिशें भी साथ लेकर आती है. गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस पर किसान आंदोलन के उपद्रव में बदल जाने के बाद भारत सरकार ने ट्विटर को नोटिस भेज कर 1,178 खातों को बंद करने को कहा गया था. इस पर अमल करने के बजाय सोशल मीडिया साइट ने ट्वीट्स का प्रवाह जारी रहने की वकालत की. इसके जवाब में भारतीय अधिकारियों ने ट्विटर पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए वॉशिगंटन की कैपिटल हिल हिंसा का उदाहरण दिया गया. यहां गौर करने वाली बात यह कि किसान आंदोलन के नाम पर की गईं भारत विरोधी ट्वीट्स को ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी ने भी लाइक किया था.
पहले हटाए 257, इस बार टालू रवैया
सूत्रों के मुताबिक सरकार ने ट्विटर से 1,178 सूचीबद्ध पाकिस्तानी और भारत विरोधी मुहिम में जुटे उपयोगकर्ताओं को हटाने के लिए कहा था. इसके जवाब में ट्विटर ने अपने ताजा बयान में कहा, ‘हम दृढ़ता से मानते हैं कि सूचना के खुले और मुक्त आदान-प्रदान का सकारात्मक वैश्विक प्रभाव पड़ता है और ट्वीट्स का प्रवाह जारी रहना चाहिए. इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 31 जनवरी को ट्विटर को इसी तरह के अन्य मामलों के लिए 257 ट्विटर हैंडल को हटाने के लिस्ट भेजी थी, जिन्हें ट्विटर ने ब्लॉक कर दिया था. इसके बाद 4 फरवरी को किसान आंदोलन के बीच मंत्रालय ने पाकिस्तान और पंजाब की चुनी सरकार को हटा अपना शासन लाने वाले मंसूबों का समर्थन करने वाले ट्विटर हैंडल की एक अन्य सूची जारी की.
ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी ने भी लाइक किए भारत विरोधी ट्वीट्स
यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ दिनों पहले ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी ने किसान विरोध प्रदर्शनों के समर्थन में विदेशी-आधारित हस्तियों द्वारा किए गए कई ट्वीट को लाइक किया था. इसे देखते हुए खातों को ब्लॉक करने के सरकार के आदेश की ट्विटर की अवहेलना कई सवाल खड़े करती है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सरकार के निवेदन की लगातार अवहेलना ट्विटर को काफी महंगी पड़ सकती है. देश में ऐसे मामलों से निपटने के लिए कई कड़े कानून हैं. उन्होंने कहा कि एक टूलकिट के सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि तनाव से जुड़ी सामग्री को प्रसारित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट और पाकिस्तान जैसे देशों की भागीदारी है. स्वतंत्र भाषण क्या है यह तय करने वाला ट्विटर कौन होता है.
ट्विटर पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप
ऐसे में फिर जब भारत में 26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई हिंसा के बाद अकाउंट्स बंद क्यों नहीं किए जा रहे हैं. आईटी मंत्रालय के सेक्रेटरी की ओर से इस मामले में कड़ी आपत्ति जताई गई. सरकार की ओर से कहा गया कि दी गई लिस्ट में से कई अकाउंट्स ने सामान्य स्थिति को बिगाड़ने का काम किया था. इस दौरान सरकार की ओर से ट्विटर पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया और अमेरिका में हुई हिंसा का हवाला दिया. इतना ही नहीं सरकार की ओर से ट्विटर को दंगा एक्ट की जानकारी दी गई और उसके हिसाब से एक्शन लेने को कहा गया. सूत्रों की मानें तो सरकार ने बैठक में अमेरिका के कैपिटल हिल में हुई हिंसा और भारत में लालकिले पर हुई हिंसा का उदाहरण दिया. सरकार ने संकेत दिए कि ट्विटर ने कैपिटल हिल में हुई हिंसा के बाद कई अकाउंट्स को बंद किया, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट भी शामिल था.
टूलकिट का भी बैठक में हुआ जिक्र
ट्विटर के साथ बैठक में भारत सरकार ने तथाकथित टूलकिट का भी जिक्र किया, आरोप लगाया कि ट्विटर का इस्तेमाल इस तरह से गलत कैंपेन चलाने के लिए किया जा रहा है ताकि भारत का माहौल बिगाड़ा जा सके. ऐसे में ट्विटर को सख्त कार्रवाई करनी ही होगी. भारत सरकार की ओर से उन ट्विटर अकाउंट्स को लेकर आपत्ति जाहिर की गई, जिन्होंने किसान आंदोलन के दौरान विवादित हैशटेग को बढ़ावा दिया था. सरकार ने ट्विटर से इन अकाउंट्स को डिलीट करने को कहा था, लेकिन ट्विटर ने ऐसा नहीं किया इसी वजह से माहौल बिगड़ता दिख रहा है. गौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के बाद भारत ट्विटर के लिए तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। ट्विटर के देश में लाखों उपयोगकर्ता हैं, जिनमें प्रमुख अभिनेता, खिलाड़ी, सरकारी अधिकारी और शीर्ष राजनेता शामिल हैं। गौरतलब है कि ट्विटर पर लगातार फैलाई जा रही अफवाहों को लेकर पिछले दिनों 250 से अधिक अकाउंट को बंद कराया गया था.
ऐसा पहली बार नहीं है कि सोशल मीडिया साइट ट्विटर (Twitter) अपने मनमाने और अड़ियल रवैये को लेकर आलोचना के केंद्र में है. इसके पहले भी कई देशों में ट्विटर की मनमानी को लेकर आवाजें उठी हैं. हाल ही में अमेरिका (America) के राष्ट्रपति जो बाइडन के चुनाव जीतने पर भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के समर्थकों की ओर से वॉशिंगटन स्थित कैपिटल बिल्डिंग में की गई हिंसा के बाद भी ट्विटर को मुखर विरोध का सामना करना पड़ा था. खासकर यह आलोचना ट्रंप के ट्विटर अकाउंट को हमेशा के लिए प्रतिबंधित किए जाने को लेकर उठी थी. इन आलोचकों में फ्रांस (France), जर्मनी (Germany) सरीखे देशों के अलावा वे नेता और विशेषज्ञ भी शामिल थे, जो ट्रंप की नीतियों को पसंद नहीं करते थे. सभी का एक सुर में यही कहना था कि किसी व्यक्ति या संस्था के विचार लिखने-पढ़ने से रोकने का अधिकार किसी एक व्यक्ति यानी ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी के पास नहीं होना चाहिए. खासकर यह देखते हुए कि सोशल मीडिया ट्रंप के पूरे कार्यकाल में उनके दुष्प्रचार को फैलाने का माध्यम बनी रहीं. अब सत्ता से बाहर होने के बाद ट्रंप के खिलाफ लामबंद हो रही हैं.
जर्मनी की चांसलर मुखर
गौरतलब है कि ट्विटर ने ट्रंप को स्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया है. इस कदम के खिलाफ जिन शख्सियतों ने आवाज उठाई है, उनमें जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल भी हैं. मर्केल के ट्रंप से अच्छे रिश्ते नहीं रहे, लेकिन अब उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया के ताजा रुख से ये जरूरत और ज्यादा महसूस हुई है कि इन कंपनियों पर कड़े नियम लागू करने की जरूरत है. मर्केल के प्रवक्ता ने ट्रंप के खिलाफ लगे प्रतिबंध को गलत बताया. उन्होंने कहा, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकार में दखल दिया जा सकता है, लेकिन ऐसा कानून में परिभाषित नियमों के तहत होना चाहिए. ऐसा सोशल मीडिया कंपनियों के प्रबंधन के फैसलों के तहत नहीं हो सकता.’
फ्रांस भी जता चुका है एतराज
फ्रांस सरकार ने भी ट्रंप पर लगे प्रतिबंध को लेकर एतराज जताया है. फ्रांस के विदेश मंत्री ब्रुनो ली मायर ने कहा कि हालांकि ट्रंप के झूठ निंदनीय हैं, लेकिन ट्विटर का अपने प्लेटफॉर्म से ट्रंप के सभी ट्विट डिलीट कर देने का फैसला सही नहीं है. उन्होंने कहा, डिजिटल दुनिया का विनियमन डिजिटल कुलीनतंत्र (ऑलिगार्की) नहीं कर सकता. फ्रांस के डिजिटल मामलों के उप मंत्री सेद्रिक ओ ने भी सोशल मीडिया कंपनी के ताजा व्यवहार पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा- सोशल मीडिया कंपनियां सार्वजनिक चर्चा का विनियमन सिर्फ अपने टर्म एंड कंडीशन के तहत कर सकती हैं. इसलिए ऐसा लगता है कि अमेरिका में उन्होंने जो कदम उठाए हैं, वो लोकतांत्रिक नजरिए से सही नहीं हैं.
यूरोप तो काफी समय से पहले लगा है नकेल कसने में
यूरोप में पहले से ही सोशल मीडिया कंपनियों को नियमित करने की कोशिश चल रही है. कुछ समय पहले ही यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने इन कंपनियों के विनियमन का एक दस्तावेज जारी किया था. इन प्रयासों के पीछे जिन लोगों की प्रमुख भूमिका है, उनमें एक थियरी ब्रेटॉन भी हैं. उन्होंने वेबसाइट पोलिटिको.ईयू पर लिखे एक लेख में कहा है- ‘यह बात परेशान करने वाली है कि एक सीईओ अमेरिकी राष्ट्रपति के लाउ़डस्पीकर का प्लग मनमाने ढंग से खींच सकता है. इससे इन कंपनियों की ताकत का अंदाजा तो लगता ही है, साथ ही इससे यह भी जाहिर होता है कि हमारा समाज डिजिटल स्पेस को संगठित करने के लिहाज से कितना कमजोर है.’ इसी सिलसिले में ईयू के कूटनीति प्रमुख जोसेफ बॉरेल ने एक ब्लॉग में लिखा है कि यूरोप में सोशल मीडिया नेटवर्कों के लिए बेहतर विनियमन की जरूरत है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए ऐसा किया जाना चाहिए. इसे स्वीकार करना संभव नहीं है कि निजी क्षेत्र की कंपनियां अपने नियमों के तहत अपने प्लेटफॉर्म पर कंटेंट का विनियमन करें.
ट्विटर की सेंसरशिप के खिलाफ है रूस
ट्विटर के खिलाफ आवाज रूस से भी उठी है. वहां के मशहूर विपक्षी नेता अलेक्सी नावालनी ने इसे सेंसरशिप का अस्वीकार्य कदम कहा है. उन्होंने कहा कि ट्विटर ने किसी नियम के तहत ये कार्रवाई की ये किसी को नहीं मालूम. ये कदम भावनाओं और निजी राजनीतिक प्राथमिकता के आधार पर उठाया गया है. रूस के सरकारी मीडिया कर्मी व्लादीमीर सोलोवियेव ने कहा है कि इस कदम से ऐसा लगता है कि अमेरिकी संविधान ट्विटर कंपनी के अंदरूनी दस्तावेजों से कम महत्वपूर्ण है.
अमेरिका में भी स्वर हैं मुखर
अमेरिका में सोशल मीडिया के कई विशेषज्ञों ने कहा है कि किसी व्यक्ति पर संपूर्ण प्रतिबंध लगाने का अधिकार सोशल मीडिया कंपनियों को नहीं दिया जाना चाहिए. कैलिफोर्निया में प्रोफेसर और सोशल मीडिया रिसर्चर रमेश श्रीनिवासन ने ऑनलाइन चैनल डेमोक्रेसी नाउ से बातचीत में कहा कि ये कंपनियां वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ पहले से ऐसा करती रही हैं. अब अमेरिका में बदले राजनीतिक माहौल के बीच उन्होंने ट्रंप को निशाना बनाया है. उन्हें अगर नहीं रोका गया, तो आखिरकार इसका सबसे अधिक खामियाजा वामपंथ को ही उठाना होगा.
अब भारत से भी खोला मोर्चा
इन देशों के बीच भारत का भी ट्विटर से सीधा मोर्चा खुल गया है. भारत में चल रहे किसान विरोध आंदोलन में भड़काने और उकसाने वाले ट्वीट्स की संलिप्तता देखकर मोदी सरकार ने ट्विटर से 1178 अकाउंट बंद करने कहा था. हालांकि विचारों के मुक्त प्रवाह की वकालत करते हुए ट्विटर ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. इसके जवाब में भारत की ओर से भी तीखी प्रतिक्रिया दी गई और कहा गया कि देश के कानून सर्वोपरि हैं. गौरतलब है कि ग्रेटा थनबर्ग और रिहाना के भारत विरोधी और किसान आंदोलन समर्थित ट्वीट्स को खुद ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी ने लाइक किया था.