भारत में कृषि कानूनों पर सड़क से लेकर संसद तक संग्राम जारी है। किसान संगठन भले ही मोदी सरकार को घेर रहे हों, मगर अमेरिका ने इसका समर्थन किया है। अमेरिका ने बुधवार (स्थानीय समय) को भारत के नए कृषि कानूनों का समर्थन किया और कहा कि वह मोदी सरकार के इस कदम का स्वागत करता है, इससे भारत के बाजारों का प्रभाव बढ़ेगा। अमेरिका ने कहा यह उन कदमों का स्वागत करता है, जो भारतीय बाजारों की ‘दक्षता में सुधार’ करेंगे और निजी क्षेत्र के अधिक निवेश को आकर्षित करेंगे।
भारत में चल रहे कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलनों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि वाशिंगटन यह मानता है कि शांतिपूर्ण विरोध किसी भी संपन्न लोकतंत्र की पहचान है। साथ ही यह भी कहा कि पार्टियों के बीच मतभेदों को बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की ओर से इस बारे में संकेत दिया गया कि बाइडेन प्रशासन, कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए लाए गए भारत सरकार के कदमों के समर्थन में है. मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा, ‘सामान्य तौर पर, हम ऐसे कदमों का स्वागत करते हैं, जिससे भारत के बाजारों की कार्यक्षमता बढ़ेगी और क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर का निवेश बढ़ेगा.’
भारत में चल रहे किसान आंदोलन पर सवाल पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका दोनों पक्षों के बीच बातचीत से समाधान निकाले जाने को बढ़ावा देता है. प्रवक्ता ने कहा, ‘हम मानते हैं कि शांतिपूर्ण आंदोलन किसी भी लोकतंत्र की पहचान है और ध्यान दीजिए कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा है.’
इस बीच, कई अमेरिकी सांसद किसान आंदोलन के समर्थन में आए हैं. सांसद हेली स्टीवन्स ने कहा कि ‘भारत में कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एक्शन लिए जाने की खबरों से चिंतित हूं.’ एक बयान जारी कर उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार से, किसानों के साथ बातचीत कर मामला सुलझाने की अपील की. उन्होंने यह भी कहा कि हालात पर नजर रख रही हैं.
एक अन्य सांसद इलहान ओमर ने भी किसानों को अपना समर्थन दिया. उन्होंने एक ट्वीट कर कहा, ‘भारत को अपने मूलभूत लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करनी होगी. सूचना की बेरोक-टोक आवाजाही की अनुमति दी जाए, इंटरनेट एक्सेस को फिर से शुरू किया जाए और इस आंदोलन को कवर करने के लिए हिरासत में लिए गए सभी पत्रकारों को रिहा किया जाए.’
दरअसल, कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 26 नवंबर से किसान प्रदर्शऩ कर रहे हैं। वहीं, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसान ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली में हिंसा भी हुई थी, जिसके बाद कई जगहों पर इंटरनेट सेवा को बाधित किया गया। बता दें कि कृषि कानून पर सहमति को लेकर किसानों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, मगर सभी बेनतीजा रहे। 22 जनवरी को प्रदर्शनकारी किसानों के साथ 11वें दौर की वार्ता के दौरान सरकार ने नए कानूनों को डेढ़ साल के लिए निलंबित करने का प्रस्ताव रखा और अधिनियमों पर चर्चा के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने का भी प्रस्ताव रखा। मगर किसान तब भी नहीं माने।