मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रदेश मंत्रिमंडल विस्तार पर बार-बार यही कहते रहे हैं कि इस मामले में भाजपा की वजह से देरी हो रही है। इस बात पर भाजपा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इसका मतलब यह कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री का कहना सही है। सूत्रों की मानें तो भाजपा आलाकमान पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर व्यस्त है। पार्टी आलाकमान ने बिहार भाजपा के बडे़ नेताओं को आपस में मिलकर कर मंत्रियों की सूची बनाने का निर्देश दिया था। लेकिन, बिहार भाजपा में चार गुट बन जाने की वजह से इस मुद्दे पर एक राय नहीं बन पा रही है। सभी अपनी-अपनी पसंद के नेताओं को मंत्री बनाने की फिराक में हैं। इसलिए अभी तक भाजपा के मंत्रियों की लिस्ट नहीं बन पाई है। इस बात से हैरान भाजपा आलाकमान ने बिहार के प्रमुख नेताओं को कल दिल्ली बुलाया है।
बिहार भाजपा में जो चार गुट बने हैं, उनका नेतृत्व अलग-अलग नेता कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि इन गुटों की मंशा क्या है और इन गुटों के नेता कौन हैं।
सुशील मोदी: बिहार भाजपा के कद्दावर नेता हैं। भले ही राज्यसभा से सदस्य बन गए हों, लेकिन बिहार की राजनीति में इनका सबसे बड़ा हस्तक्षेप है। बिहार में भाजपा को इस मुकाम पर लाने का श्रेय भी सुशील मोदी को ही जाता है। अभी 50 से अधिक विधायक सुशील मोदी के गुडबूक में है। सुशील मोदी चाहते हैं कि बिहार भाजपा का ‘पावर प्वाइंट’ उनके हाथ में रहे।
संजय जायसवाल: 2019 में प्रदेश अध्यक्ष बने संजय जायसवाल के नेतृत्व में ही बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ। विधानसभा चुनाव का परिणाम संजय जायसवाल अपनी सफलता से जोड़ कर देखते है। जायसवाल संगठन के साथ साथ मंत्रिमंडल पर अपना ‘प्रभाव’ रखना चाहते हैं। वे मंत्रिमंडल में अपने विश्वासपात्रों को रखना चाहते हैं।
नित्यानंद राय: इस बार विधानसभा चुनाव में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और केंद्र में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की खूब चली है। नित्यानंद राय ने चुनाव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, रैलियां कीं, सभाएं भी कीं। चर्चा यहां तक होने लगी कि नित्यानंद राय बिहार के डिप्टी CM बनेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब जब मंत्रिमंडल का विस्तार होना है तो नित्यानंद राय की ‘राय’ महत्वपूर्ण है। वे भी चाहते हैं कि उनके लोगों को ज्यादा से ज्यादा चांस मिले।
तारकिशोर प्रसाद-रेणू देवी: बिहार में तारकिशोर प्रसाद और रेणू देवी उप मुख्यमंत्री हैं। दोनों की चाहत है कि भाजपा जो मंत्रियों की टीम बनाए, उसमें उनके लोग ज्यादा रहें। जो भी मंत्री बनें, उन दोनों को अपना ‘नेता’ माने। दोनों के पास ऐसे नेताओं की लिस्ट है जो उनके ‘गुडफेथ’ में है।
उधर, मंत्रिमंडल विस्तार में देरी की वजह से भाजपा आलाकमान पर जदयू का दबाव है। केंद्रीय नेतृत्व ने सभी नेताओं को 1 फरवरी को दिल्ली बुलाया है। माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद ये मामला सुलझ जाएगा। वहीं, जदयू इस इंतजार में है कि मंत्रिमंडल और राज्यपाल मनोनयन को फाइनल एक साथ किया जाए। साथ ही केंद्रीय मंत्रिमंडल और बिहार में आयोग, बीस सूत्री, बोर्ड, निगम को भी अंतिम रूप दे दिया जाए, ताकि आगे के लिए कोई विवाद न हो।