वर्षों से देखा जा रहा है कि हाई प्रोफाइल मामले में पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती है। यदि मामले का खुलासा भी किया जाता है तो उसे तोड़़ मरोड़़ कर पेश किया जाता है। पुलिस थ्योरी गले से नीचे नहीं उतरती है। देखा गया है कि ७० के दशक में चाहे वरीय आईएएस अधिकारी की पत्नी की संदिग्धावस्था में मौत का मामला हो या फिर एनएमसीएच की परिचारिका मेरी की लाश रेलवे ट्रैक पर मिलने का‚ पुलिस इन मामलों में सही तस्वीर सामने नहीं ला सकी। १९८३ के चर्चित स्वेतनिशा उर्फ बॉबी हत्याकांड़ को भी पचा लिया गया। सफेदपोशों से जुड़े गौतम शिल्पी हत्याकांड़ में भी कार्बन मोनोऑक्साइड़ से एक्सीडें़टल ड़ेथ बताकर कई लोगों को अभयदान दिया गया। अब चर्चा इंडि़गो के स्टेशन मैनेजर रूपेश की हत्या को लेकर है कि क्या ठस मामले में भी पुलिस सही कारणों और बदमाशों तक पहुंच पाएगी। पुलिस महानिदेशक के दावे के बाद पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाए जा रहे हैं। कई नेताओं का कहना है पुलिस मामले को ड़ायवर्ट करने का प्रयास कर रही है।
सबसे पहले बात करते हैं ७० के दशक के चर्चित आईएएस की पत्नी की संदिग्धावस्था में मौत की। उनकी पत्नी का शव बेली रोड़ स्थित एक रेस्ट हाउस से बरामद किया गया था। बेटे ने शव देखा था और फिर पुलिस को खबर की गयी थी। जांच जब शुरू हुई तो बड़े़ अधिकारियों के घर तक इसकी लपटें पहुंचने लगीं। अवैध संबंध की चर्चा जोरों पर उठी। चर्चा थी कि पति के आचरण का विरोध करने के कारण पत्नी की हत्या कर दी गयी थी। पोस्टमॉर्टम में देखा गया कि मृतका की आगे की दो दांत टूटी हुई थी। बाहरी चोट के कारण दांत टूटने की बात ड़ॉक्टरों ने कही लेकिन मौत के कारणों का खुलासा नहीं किया। बिसरा को जांच के लिए रख लिया गया। सफेदपोशों को ड़र सताने लगा और जांच को ऊपरी दबाव के बाद धीमी कर पटाक्षेप कर दिया गया।
७० के ही दशक में एनएमसीएच की परिचारिका मेरी हत्याकांड़ की गूंज राजधानी की सडकों से होते हुआ सत्ता के गलियारे तक जा पहुंची। वरीय ड़ॉक्टर के बेटे और उसके मित्रों पर मेरी की हत्या कर शव को रेलवे लाइन पर फेंकने का आरोप लगा। परिचारिका और ड़ॉक्टर के बेटे में संबंध था। उस वक्त एनएमसीएच और पीएमसीएच में हड़़ताल भी हुई लेकिन आत्महत्या का मामला बताकर इसका पटाक्षेप कर दिया गया। घटना में मेरी की दोस्त ने गवाही दी था और अंतिम बार ड़ॉक्टर के बेटे के साथ देखे जाने की जानकारी पुलिस को दी थी। लेकिन‚ जांच में इन बातों को गौण कर मामले को आत्महत्या का बताकर संचिका बंद कर दी गयी।
उसी दौर में पटना मेडि़कल कॉलेज के वरीय ड़ॉक्टर ड़ीएन पांडे़य की हत्या कर शव को पीएमसीएच परिसर स्थित ड़ॉक्टर्स क्वार्टर के पास रख दिया गया था। सुबह में लोगों ने देखा कि बैचलर्स क्वार्टर स्थित गायनोक्लॉजी की ड़ॉक्टर के दरवाजे पर ड़ॉक्टर ड़ीएन पांडे़य का शव रखा हुआ है। शव को इस तरह रखा गया था जैसे लगता था कि कोई थकहारकर दीवार से पीठ सटाकर बैठा है। पीरबहोर पुलिस मौके पर पहुंची और शव का पंचनामा कर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। पुलिस ने ड़ॉक्टर पांडे़य के शरीर पर मिले जख्म कोसर्जिकल बताते हुए कहा कि इसे मेडि़कल पेशे से जुड़े़ लोगों ने अंजाम दिया। पुलिस जांच शुरू हुयी। मामला परिचारिका से प्रेम प्रसंग का निकला। अन्य लोगों को ड़ॉक्टर पांडे़य का प्रेम प्रसंग नहीं पच रहा था। जांच की जद में कई ड़ॉक्टर आए। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे और उनके बैच के लोग भी शामिल थे। सभी पुलिस से बचने के लिए अंड़रग्राउंड़ हो गये। बाद में मामले का खुलासा किये बगैर जांच बंद कर दी गयी। मामला नौकरशाह का हो या फिर सत्ता के गलियारे से जुड़़ा‚ हश्र एक जैसा रहा,शुरू में पुलिस करती है तेजी लेकिन अंत में सब हो जाता है