कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर सोशल डि़स्टेन्सिंग‚ मास्क एवं सैनिटाइजेशन का प्रयोग किया जा रहा है। साथ ही २५ मार्च से लगभग पूरे देश में क्षेत्रीय आवश्यकता अनुसार लॉकड़ाउन जारी हुआ। कई लोगों की जिज्ञासा है कि कोरोना काल में अपराध की स्थिति क्या रहीॽ अपराध बढ़ा या घटा या पद्धति में कोई परिवर्तन हुआॽ जैसा कि हम सब जानते हैं कि कोरोना संक्रमण का प्रकोप वैश्विक स्तर पर है और प्रायः सभी देशों में कमोवेश एक जैसे बचाव के उपाय किए गए हैं। इनमें लॉकड़ाउन और मास्क तथा ग्लब्स का प्रयोग आम है। लॉकड़ाउन के कारण बाजार प्रायः बन्द रहे और लेन–देन तथा खरीद–बिक्री ऑनलाइन हुई। ऑनलाइन लेन–देन अधिक होने के कारण साइबर फ्रॉड़ की घटनायें इस अवधि में अधिक हुइ। लॉकड़ाउन में व्यावसायिक प्रतिष्ठान‚ स्कूल आदि बन्द रहे और लोगों की आवाजाही पर भी प्रतिबंध था इसलिए लूट‚ ड़कैती या हत्या जैसे अपराधों की संख्या में कमी देखने को मिली। अगर हम अपराध के पैटर्न की बात करें तो उसमें एक परिवर्तन देखने को मिला। प्रायः जो अपराधी लूट या ड़कैती करने जाते हैं वे गमछे से मुंह बांधकर अपनी पहचान छुपाते हैं। लेकिन वे सार्वजनिक रूप से पहचान छुपाकर नहीं घूम सकते‚ क्योंकि यदि सार्वजनिक रूप से पहचान छुपाकर घूमेंगे तो लोग या पुलिस उन पर संदेह करेगी। किन्तु कोरोना के समय प्रशासनिक आदेश में मास्क या गमछे की अनिवार्यता रहने से अपराधियों के लिए यह सुविधाजनक रहा। सभी मास्क लगाए हुए हैं इसलिए यह कहना मुश्किल है कि किस व्यक्ति का आपराधिक उदेश्य है। मास्क लगाने से अपराध करने वाले को दो फायदे हुए। एक तो कि उनका मनोबल बढ़ा अर्थात् मास्क लगाकर वे खुले आम आवागमन करते रहे क्योंकि मास्क सभी के लिए विहित था। दूसरा यह कि मास्क लगाने से पहचान कर पाना कठिन होता है। सीसीटीवी फुटेज के आधार पर बहुत से अनुसंधान होते हैं जिनमें व्यक्तियों को चेहरे के आधार पर पहचाना जाता है। मास्क के प्रयोग के कारण सीसीटीवी फुटेज में भी अपराधियों को पहचान पाना कठिन हुआ है। कई अपराधों के अनुसंधान में अंगुलांक का उपयोग किया जाता है किन्तु कोरोना काल में ग्लब्स पहनने की भी सलाह दी गयी है‚ इसलिए अपराध करने वाले विशेष रूप से ग्लब्स का प्रयोग कर रहे हैं ताकि घटनास्थल पर उनका अंगुलांक न छूटे और उनकी पहचान न की जा सके। इस प्रकार मास्क और ग्लब्स के प्रयोग से सीसीटीवी फुटेज या अंगुलांक के आधार पर अपराधियों की पहचान तथा अनुसंधान में कठिनाई उत्पन्न हुई है। पहले अनुमान था कि बड़ी संख्या में मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं इसलिए उनमें आपराधिक प्रवृतियां बढ़ सकती हैं‚ किन्तु ऐसा नहीं हुआ। इससे यह भी प्रमाणित हुआ कि एकाएक कोई भी व्यक्ति अपराधी नहीं बन सकता चाहे वह कितना भी गरीब हो। इस दौरान स्ट्रीट क्राइम छिटपुट लूट–पाट और साइबर फ्रॉड़ में वृद्धि हुई है। दिल्ली में चेन स्नेचिंग जैसे साधारण अपराध की कुछ ऐसी घटनाएं अवश्य प्रकाश में आयीं जिनमें सिक्यूरिटी गार्ड़ और सेल्समैन जैसे लोग सम्मिलित थे‚ जिनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था। साइबर क्राइम में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने वाली भी घटनाएं हुइ। नोएड़ा में एक घटना हुई जिसमें अपराधियों का एक समूह हेल्थ वर्कर के रूप में उपकरणों के साथ आया और घरों को सैनिटाइज करने के नाम पर ठगी की। वे लोग फुल बॉड़ी किट (पीपीई)‚ मास्क आदि के साथ आये थे इसलिए उन्हें पहचानना भी मुश्किल था।
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