गुजरात दंगे से जुड़े साजिश के मामले में एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अंतरिम जमानत दे दी है. हालांकि, नियमित जमानत पर फैसला गुजरात हाईकोर्ट ही करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘याचिकाकर्ता एक महिला है जो दो महीने से हिरासत में है. जो मामला है वो 2002-2010 के बीच के दस्तावेज का है. जांच मशीनरी को सात दिनों तक उससे हिरासत में पूछताछ का मौका मिला होगा. रिकॉर्ड में मौजूद परिस्थितियों को देखते हुए हमारा विचार है कि हाईकोर्ट को मामले के लंबित रहते समय अंतरिम जमानत पर विचार करना चाहिए था.’ तीस्ता पूरे 69 दिन बाद जेल से बाहर आएंगी.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि तीस्ता का मामला जब तक हाईकोर्ट के पास है, तब तक उन्हें अपना पासपोर्ट सरेंडर करना होगा. 25 जून को अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने तीस्ता सीतलवाड़ को मुंबई से गिरफ्तार किया था. 30 जुलाई को निचली अदालत ने उनकी जमानत खारिज कर दी थी.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु भट की बेंच ने सुनवाई की. गुजरात सरकार (Gujarat Government) की ओर से SG तुषार ने कहा कि कल सुप्रीम कोर्ट ने सही तौर पर मामला उठाया कि हाईकोर्ट ने इतना समय क्यों लगाया. मैंने सरकारी वकील से विस्तार से बात की. हाईकोर्ट ने इस मामले में वही किया जो आम तौर पर मामलों में करता है. उन्होंने कहा कि तीन अगस्त को हाईकोर्ट के पास 168 केस लगे थे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार ने हमें बताया कि हाईकोर्ट को ही मामला सुनने दिया जाए. जहां पर राज्य सरकार को छह सप्ताह का समय जवाब के लिए दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम मामले कि योग्यता पर नहीं जाते और मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए जमानत देते हैं, क्योंकि महिला दो माह से जेल में है. दूसरा यह कि सात दिन जांच एजेंसी ने इंटरोगेशन किया है, जो पूरा हुआ. ऐसे में याचिकाकर्ता को राहत मिलनी चाहिए.
गुजरात सरकार ने दाखिल किया था हलफनामा
30 अगस्त को गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर तीस्ता की जमानत का विरोध किया था. सरकार ने कहा- ‘तीस्ता के खिलाफ FIR न केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है, बल्कि सबूतों द्वारा समर्थित है. अब तक की गई जांच में FIR को सही ठहराने के लिए उस सामग्री को रिकॉर्ड में लाया गया है, जो स्पष्ट करती है कि आवेदक ने राजनीतिक, वित्तीय और अन्य भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए अन्य आरोपियों के साथ मिलकर आपराधिक कृत्य किए थे.’
गुजरात पुलिस ने किया था गिरफ्तार
सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली SIT रिपोर्ट के खिलाफ याचिका को 24 जून को खारिज कर दिया था. याचिका जकिया जाफरी ने दाखिल की थी. जकिया जाफरी के पति एहसान जाफरी की इन दंगों में मौत हुई थी.
कोर्ट में हुई लंबी बहस
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘हमने कोर्ट से आग्रह किया था और इसके बाद कोर्ट ने जांच अफसर को दिए हैं, ताकि सुप्रीम कोर्ट में रखे जा सकें. एसजी ने कहा कि एसआईटी की रिपोर्ट से भी साफ है कि सबूत के नाम पर तीस्ता ने जो कुछ भी दिया उसमें से काफी मनगढ़ंत था. ये गलत बयानी भूल वश नहीं बल्कि सोची समझी साजिश थी. ये कोर्ट से बाहर तैयार कराया गया था.’
इसपर CJI ने कहा, ‘आपको तीस्ता से हिरासत में पूछताछ में क्या मिला?’ तुषार मेहता ने कहा, ‘वो इंटलीजेंट हैं शायद कुछ बताया नहीं होगा.’ CJI ने कहा, ‘कितने दिन की पुलिस हिरासत थी.’ तुषार ने कहा, ‘सात दिन की. वो काफी चतुर महिला है. उसने किसी सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया.’ कोर्ट ने पूछा- तो उसने क्या जवाब दिया? इस पर एसजी ने कहा- उसने कोई सहयोग नहीं किया. अगर सुप्रीम कोर्ट दखल देता है तो ये गलत मिसाल होगी, हाईकोर्ट को तय करने दें.
CJI ने कहा, ‘अभी जो गवाह सामने आए हैं, उनसे पहले पूछताछ हो चुकी है. जिस क्षण एक आदमी को कठघरे में खड़ा किया जाता है और ट्रायल में शपथ पर गवाही दी जाती है. एसआईटी ने शपथ पर सवाल नहीं किया है. उस समय क्या कोई आरोप था कि इस महिला ने गवाहों पर दबाव डाला?’ एसजी ने कहा- हम अभी भी जांच कर रहे हैं. कोई शिकायत नहीं थी.
तीस्ता सीतलवाड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि, 124 लोगों को उम्रकैद हुई है. ये कैसे कह सकते हैं कि गुजरात में कुछ नहीं हुआ. ये सब एक उद्देश्य के लिए है. ये चाहते हैं कि तीस्ता ताउम्र जेल से बाहर ना आए. सिब्बल ने कहा कि, 20 साल से सरकार क्या करती रही. ये हलफनामे 2002-2003 के हैं. तो ये जालसाजी कैसे हो गए? ये हलफनामे इस केस में दाखिल नहीं किए गए. ये पहले के केसों में फाइल किए गए थे.
कपिल सिब्बल ने कहा, ‘मैंने जज, न्यायपालिका पर आरोप नहीं लगाया है. मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं. मुझे कानून अधिकारी से इसकी उम्मीद नहीं है. यह सब प्रेरित है. अगर वे टाइप किए हुए भी हैं, तो इसमें जालसाजी कैसे आ सकती है? यदि जालसाजी आती है तो जालसाजी की शिकायत करने वाले व्यक्ति को न्यायालय अवश्य आना चाहिए. लेकिन राज्य यहां आकर कह रहा है. यह दुर्भावनापूर्ण है, प्रेरित है और मैंने जो किया वह जनता के बड़े हित में है. इस वजह से मेरी गिरफ्तारी हुई है. ये हलफनामे कुछ अन्य मामलों में दायर किए गए हैं. यह कुछ अन्य मामलों में NHRC के समर्थन में SC के समक्ष दायर हलफनामे हैं. तो क्या NHRC प्रेरित था, मैं प्रेरित. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. मामला इस अदालत के सामने आया और अदालत ने मुझे कुछ राहत दी.’