कीट पतंगों की अधिकतम प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है। निरंतर गर्म होती धरती और बड़े पैमाने पर खेती के लिए कटते जंगलों के कारण दुनिया से कीटों का वजूद सिमटता जा रहा है। बहुत से इलाकों में कीटों की आबादी सिमटकर आधी हो चुकी है।
जहां गर्मी का प्रभाव कुछ कम है और जो इलाके औद्योगिक खेती से बचे हुए हैं वहां कीट पतंगे अभी कुछ हद तक नजर आ जाते हैं। प्रतिष्ठित साइंस मैगजीन ‘नेचर’ में प्रकाशित शोध के अनुसार बढ़ती ग्लोबल वार्मिंंग और कीट पतंगों के घटते आवासों के कारण कीटों की न सिर्फ आबादी घट रही है बल्कि उनकी प्रजातियों की विविधता में भी कमोबेश 27 फीसद तक की कमी आई है। कीट पतंगों की घटती आबादी मानवता के लिए आगामी खतरे की निशानी है क्योंकि खाद्य सुरक्षा चक्र में इनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है। यह कमी सबसे ज्यादा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में है। जैव विविधता से भरपूर इस क्षेत्र के बहुत कम आंकड़े मिले हैं जिससे यह आशंका बलवती हो गई है कि हालात शोध में मिले निष्कषरे कहीं ज्यादा भयावह हो सकते हैं।
दुनिया भर में खाने लायक जो 115 सबसे प्रमुख फसलें हैं उनमें कीटों के जरिए ही परागण होता है। कुछ कीट तो नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों पर नियंत्रण के लिए भी जरूरी होते हैं। लेडीबग, प्रेयिंग मान्टिस, ग्राउंट बीटल्स, वैस्प और मकड़े एफीड से लेकर फ्ली, कटवर्म और कैटरपिलर जैसे हानिकारक कीड़ों को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। कीट दुनिया भर में मौजूद सभी प्रजातियों का लगभगत दो तिहाई हिस्सा हैं। ईकोसिस्टम के निर्माण में उनकी खास भूमिका है।
चूहे, छिपकली, उभयचर, चमगादड़, चिड़िया जैसे तमाम जीवों के लिए कीट सीधे आहार का काम करते हैं जबकि मानवों के भोजन का बड़ा हिस्सा उनकी वजह से पैदा होता है। हाल के वष्रों में यूरोप में उड़ने वाले कीटों की संख्या 80 फीसदी तक कम हो चुकी है। पिछले तीन दशक में चिड़ियों की संख्या भी 40 करोड़ से ज्यादा घट गई है। कीट प्रजातियों का लगातार खत्म होते जाना मनुष्यों के लिए भी विनाशकारी साबित होगा।